समोसे और कचौरी लाते थे रोज़,
चटनी के चटकारे के साथ हम खाते थे रोज़,
जब मर्ज़ी होती तो 'रुचिका' जा कर,
हम तो छोटे सेठ जी बन जाते थे,
ताऊजी थे कमाल हमारे,
पकवान बढ़िया-बढ़िया खिलाते थे!
गप्पी वाला गाना सुनाते थे,
पंचशील पूल वाली कहानी भी,
दिवाली में 'ऐटम बाम' पकड़ा देते,
दशहरे के मेले के पैसे भी...
समय के साथ साथ....
पैसे गुल्लक में जमा कर लिए, साथ में उनकी यादें भी!
'छोटे ताऊजी की १७वीं पुण्यतिथि' ।३ जुलाई।
चटनी के चटकारे के साथ हम खाते थे रोज़,
जब मर्ज़ी होती तो 'रुचिका' जा कर,
हम तो छोटे सेठ जी बन जाते थे,
ताऊजी थे कमाल हमारे,
पकवान बढ़िया-बढ़िया खिलाते थे!
गप्पी वाला गाना सुनाते थे,
पंचशील पूल वाली कहानी भी,
दिवाली में 'ऐटम बाम' पकड़ा देते,
दशहरे के मेले के पैसे भी...
समय के साथ साथ....
पैसे गुल्लक में जमा कर लिए, साथ में उनकी यादें भी!
'छोटे ताऊजी की १७वीं पुण्यतिथि' ।३ जुलाई।